क्रोध से आखिर कब निर्माण हुआ है ?
उग्रता छीन लेती आदमीयत
धमनियों में भर देती वहशीयत
क्षण में कर जाती पलायन चेतना
और नृत्य करती रक्त में उतेजना
उतेजना से कब कोई समाधान हुआ है
क्रोध से आखिर कब निर्माण हुआ है ?
कुछ नहीं होता तपन से देखना
धुआँ उठता है बस मिलती वेदना
क्रोध में चिंगारी जब कोई घूमती
लौटकर फ़िर अपना ही घर चूमती
बाद में बर्बाद सिर्फ इंसान हुआ है
क्रोध से आखिर कब निर्माण हुआ है ?
आँखों में शोले लिए जो भी हुआ
जब भी हुआ तब बहुत बुरा हुआ
खून से लथपथ तमाम सदियाँ हुई
क्रोध में जब भी कभी खंज़र छुआ
अंत में तन अपना लहुलूहान हुआ है
क्रोध से आखिर कब निर्माण हुआ है ?
तैश सिर्फ विध्वंस का पर्याय है
क्रोध कुछ क्षण के लिए सुखाय है
उग्रता है कुछ पलों की प्रसन्नता
और कुछ देर बाद चिर - नग्नता
क्रोध से आबाद सिर्फ शमशान हुआ है
क्रोध से आखिर कब निर्माण हुआ है ?
( उपरोक्त कविता काव्य संकलन फलक दीप्ति से ली गई है )
सर्वाधिकार सुरक्षित @ कवि दीपक शर्मा