डाल कर कुछ नीर की बूँदे अधर में
कर अकेला ही विदा अज्ञात सफ़र में
कुछ नेह मिश्रित अश्रु के कतरे बहाकर
बांधकर तन को कुछ हाथ लम्बी चीर में
डूबकर स्वजन क्षणिक विछोह पीर में
तन तेरा करके हवन को समर्पित
कुछ परम्परागत श्रद्धा सुमन करके अर्पित
धीरे -धीरे छवि तक तेरी भूल जायेंगे
काल का ऐसा भी एक दिवस आएगा
आत्मीय भी नाम तेरा भूल जायेंगे
साथ केवल कर्म होंगे, माया न होगी
सम्बन्धी क्या संग अपनी छाया न होगी
बस प्रतिक्रियायें जग की तेरे साथ होंगी
नग्न होगी आत्मा, संग काया न होगी
फिर रिश्तों के सागर में मानव खोता क्यों है
अपनी - परायी भावना लिए रोता क्यों है
जब एक न एक दिन तुझको चलना है
जो आज उदित सूर्य है और कल ढलना है