बुद्धम शरणं गच्छामि................
दो पल सुख से सोना चाहे पर नींद नही पल को आए
जी मचले हैं बेचैनी से ,रूह ना जाने क्यों अकुलाए
ज्वाला सी जलती हैं तन मे ,उम्मीद हो रही हंगामी .....
बुद्धम शरणं गच्छामि................
मन कहता हैं सब छोड़ दूँ मैं , पर जाने कैसे छुटेगा ये
लालच रोज़ बढ़ता जाता हैं ,लगती दरिया सी तपती रेत
जब पूरी होती एक अभिलाषा ,खुद पैदा हो जाती आगामी......
बुद्धम शरणं गच्छामि................
नयनो मे शूल से चुभते हैं, सपने जो अब तक कुवारें हैं
कण से छोटा हैं ये जीवन और थामे सागर कर हमारे हैं
पागल सी घूमती रहती इस चाहत मे जि़न्दगी बे-नामी........
बुद्धम शरणं गच्छामि................
ईश्वर हर लो मन से सारी, मोह माया जैसी बीमारी
लालच को दे दो एक कफ़न ,ईर्ष्या को बेवा की साड़ी
मैं चाहूँ बस मानव बनना ,माँगू कंठी हरि नामी ....
बुद्धम शरणं गच्छामि................
(उपरोक्त रचना कवि दीपक शर्मा की अप्रकाशित रचना है। सर्वाधिकार सुरक्षित @ कवि दीपक शर्मा )
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ishwar se ki gayi gujarish kabhi khali nhi jati.
ReplyDeletebahut badhiya
ईश्वर हर लो मन से सारी, मोह माया जैसी बीमारी
ReplyDeleteलालच को दे दो एक कफ़न ,ईर्ष्या को बेवा की साड़ी
मैं चाहूँ बस मानव बनना ,माँगू कंठी हरि नामी ....
बुद्धम शरणं गच्छामि................
भाई जान!
ReplyDeleteप्रणाम
आपकी ये कविता लगी सबसे अच्छामी,
आप कवियों में तगडे है आसामी।