लो राज़ की बात एक बताते हैं
हम हँसकर अपने ग़म छुपाते हैं,
तन्हा होते तो रो लेते हैं जी भर के
आदतन महफ़िल मे बस मुस्कुराते हैं.
आदतन महफ़िल मे बस मुस्कुराते हैं.
और होंगे जो झुक जाएँ रुतबे के आगे
सिर हम बस उसके दर पर झुकाते हैं
माँ मुझे फिर तेरे आँचल मे सोना है
आजा हसरत से बहुत देख बुलाते हैं
इसे ज़िद समझो या मेरा शौक़"औ"हुनर
चिराग हम तेज़ हवायों मे ही जलाते है
चिराग हम तेज़ हवायों मे ही जलाते है
महल"औ"मीनार,दौलत कमाई हैं तुमने
पर प्यार से गैर भी गले हमे लगाते हैं
शराफत हमेशा नज़र झुका कर चलती हैं
निगाह मिलाते हैं हम नज़र नहीं मिलाते हैं
निगाह मिलाते हैं हम नज़र नहीं मिलाते हैं
हैं ऊपर वाले की इनायत मुझ पे "दीपक "
वो मिट जाते जो मुझ पर नज़र उठाते हैं
सर्वाधिकार सुरक्षित @ कवि दीपक शर्मा
http://www.kavideepaksharma.co.in
http://www.kavideepaksharma.blogspot.com
http://www.shayardeepaksharma.blogspot.com
http://www.kavyadharateam.blogspot.com
शराफत हमेशा नज़र झुका कर चलती हैं
ReplyDeleteहम निगाह मिलाते हैं,नज़रे नहीं मिलाते हैं
kiya baat hain janaab......nai baat ,naya sher,
umda ghazal
regards
Salim