Wednesday, 25 February 2009

नज़्म

मोहब्बत के सफर पर चले वाले रही सुनो,
मोहब्बत तो हमेशा जज्बातों से की जाती है,
महज़ शादी ही, मोहब्बत का साहिल नहीं,
मंजिल तो इससे भी दूर, बहुत दूर जाती है ।

जिन निगाहों में मुकाम- इश्क शादी है
उन निगाहों में फ़कत हवस बदन की है,
ऐसे ही लोग मोहब्बत को दाग़ करते हैं
क्योंकि इनको तलाश एक गुदाज़ तन की है ।
जिस मोहब्बत से हजारों आँखें झुक जायें
उस मोहब्बत के सादिक होने में शक है
जिस मोहब्बत से कोई परिवार उजड़े
तो प्यार नहीं दोस्त लपलपाती वर्क है ।

मेरे लफ्जों में, मोहब्बत वो चिराग है
जिसकी किरणों से ज़माना रोशन होता है
जिसकी लौ दुनिया को राहत देती है
न की जिससे दुखी घर, नशेमन होता है ।

मेरे दोस्त ! जिस मोहब्बत से पशेमान होना पड़े
मैं उसे हरगिज़ मोहब्बत कह नहीं सकता
नज़र जिसकी वजह से मिल न सके ज़माने से
मैं ऐसी मोहब्बत को सादिक कह नहीं सकता ।

मैं भी मोहब्बत के खिलाफ नहीं हूँ ,
मैं भी मोहब्बत को खुदा मानता हूँ
फर्क इतना है मैं इसे मर्ज़ नहीं,
ज़िन्दगी सँवारने की दावा मानता हूँ ।

साफ़ हर्फों में मोहब्बत उस आईने का नाम है
जो हकीकत जीवन की हंस कर कबूल करवाता है
आदमी जिसका तसव्वुर कर भी नही सकता
मोहब्बत के फेर में वो कर गुज़र जाता है ।

( उपरोक्त नज़्म काव्य संकलन falakdipti से ली गई है )

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