Wednesday, 25 February 2009

कविता

शून्य से निकला है जग शून्य में खोता गया ,
शून्य के आगे अंक बस शून्य ही होता गया
गिनतियाँ ज़्यादा हो जाती, शून्य ही हो जाती हैं ,
कहते अनंत पर शून्य के ही दायरे में आती हैं,
एक शून्य के ही ध्यान से मिल जाते देवी- देवता,
बस शून्य के ही ज्ञान से जा नभ में मानव बैठता।
शून्य से उत्त्पन्न होकर “दीपक” शून्य में खो जाना है,
किसी अंक से स्थान नामुमकिन शून्य का भर पाना है।


( उपरोक्त कविता कवि दीपक शर्मा की अप्रकाशित रचना है )

1 comment:

  1. bahut badhiya ...........maine bhi apne blog par ek rachna likhi thi...........apne blog zakhm par ---shoonya se shoonya ki ore.

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