Monday 30 November 2009

मैं तो सिर्फ़ इतना ही जानता हूँ

मैं तो सिर्फ़ इतना ही जानता हूँ
मुझमे क्या है ये पहचानता हूँ

हुनर किसी पहचान का मोहताज़ नहीं
ये तुम भी मानते हो,मैं भी मानता हूँ

मेरे पावों के निशाँ कभी तो पढेगा ज़माना
इसलिए शहर दर शहर ख़ाक छानता हूँ

उधार की नहीं मुझमे अपनी ही रोशनी है
यूं फ़ख्र से चलता हूँ, सीना तानता हूँ

तुम इसे मेरा गुरूर न समझना "दीपक"
पाकर ही दम लेता हूँ जो भी ठानता हूँ

All right reserved@Kavi Deepak शर्मा
http://www.kavideepaksharma.com

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