मैं तो सिर्फ़ इतना ही जानता हूँ
मुझमे क्या है ये पहचानता हूँ
हुनर किसी पहचान का मोहताज़ नहीं
ये तुम भी मानते हो,मैं भी मानता हूँ
मेरे पावों के निशाँ कभी तो पढेगा ज़माना
इसलिए शहर दर शहर ख़ाक छानता हूँ
उधार की नहीं मुझमे अपनी ही रोशनी है
यूं फ़ख्र से चलता हूँ, सीना तानता हूँ
तुम इसे मेरा गुरूर न समझना "दीपक"
पाकर ही दम लेता हूँ जो भी ठानता हूँ
All right reserved@Kavi Deepak शर्मा
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