Wednesday 26 May 2010

सेमल जैसी काया

सेमल जैसी काया लेकर देखो चंदा आया रे
रौशन जगमग मेरे अंगना देखो उतरा साया रे
पूनो वाली ,रात अमावास जैसी लगती दुनिया को
चांदनी मेरे द्वारे आई ,छाया जग मे उजियारा रे ।

दूध कटोरे माफिक आंखिया,बिन बोले कह देती बतिया
रात बने दिन जगते जगते ,दिन भये सोते सोते रतिया
मुंह से दूध की लार गिरे तो मां ने हाथ फैलाया रे
चांदनी मेरे द्वारे आई ,छाया जग मे उजियारा रे ।

सर्वाधिकार सुरक्षित @ दीपक शर्मा

कवि दीपक शर्मा

Friday 7 May 2010

माफ़ कर दो आज देर हों गई आने में


माफ़ कर दो आज देर हो गई आने में
वक़्त लग जाता है अपनों को समझाने में।

किरण के संग संग ज़माना उठ जाता है
देखना पड़ता है मौका छुप के आने में

रूठ के ख़ुद को नहीं मुझको सजा देते हो
क्या मज़ा आता है यूं मुझको तड़पाने में

एक लम्हे में कोई भी बात बिगड़ जाती है
उम्र लग जाती किसी उलझन को सुलझाने में ।

तेरी ख़ुशबू से मेरे जिस्म "ओ"जान नशे में हैं
"दीपक" जाए भला फिर क्यों किसी मयखाने में ।

सर्वाधिकार सुरक्षित @ दीपक शर्मा

कवि दीपक शर्मा
http://www.kavideepaksharma.com