माफ़ कर दो आज देर हो गई आने में
वक़्त लग जाता है अपनों को समझाने में।
किरण के संग संग ज़माना उठ जाता है
देखना पड़ता है मौका छुप के आने में ।
रूठ के ख़ुद को नहीं मुझको सजा देते हो क्या मज़ा आता है यूं मुझको तड़पाने में ।
एक लम्हे में कोई भी बात बिगड़ जाती है
उम्र लग जाती किसी उलझन को सुलझाने में ।
तेरी ख़ुशबू से मेरे जिस्म "ओ"जान नशे में हैं
"दीपक" जाए भला फिर क्यों किसी मयखाने में । सर्वाधिकार सुरक्षित @ दीपक शर्मा
कवि दीपक शर्मा
http://www.kavideepaksharma.
waah.........bahut hi sundar bhav.
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